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लेखनी प्रतियोगिता -09-Aug-2022

प्रेम की परछाइयां ले

नेह की अंगड़ाइयाँ ले
मैं निकल आई हूँ घर से
दर्द की गहराइयां ले।

इधर जाऊं उधर जाऊं
बता तू ही किधर जाऊं
तुम्हारे प्रीत की खुशबू
ही मिलती है जिधर जाऊं।

तेरी यादें रुलाती हैं
तेरी बातें रुलाती हैं
गए तुम जिस दिशा में वो
दिशाएं भी बुलाती हैं।

तुम्हारे विरह की पीड़ाएँ
सारी सहन कर आई
मैं अपने सारे बन्धन
सारी सीमा दहन कर आई
बनाकर आस का मंदिर
लिए श्रद्धा की वनमाला
तुम्हारे प्रीत की मोती की
माला पहन कर आई।





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7 Comments

बेहतरीन

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Punam verma

11-Aug-2022 09:34 AM

Very nice

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Anshumandwivedi426

11-Aug-2022 10:15 AM

Thanks

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shweta soni

10-Aug-2022 10:25 AM

Nice 👍

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Anshumandwivedi426

10-Aug-2022 12:26 PM

Thanks

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